Wednesday, March 14, 2018

सुरजीत पातर की कविताएं

                                                                     असगर वजाहत

पंजाबी कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद 
शायद बीस से ज्‍यादा ही पुराना है। 
पिछले दिनों कवि अजेय ने व्‍ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्‍ने मिल गए। मतलब ये कंप्‍यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर साहब को खत भी लिखा था, पर उनका जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्‍हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि  असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।  





5
बूढ़ी जादूगरनी कहती है

तुम्हारा भी नाम रखेंगे
तुम्हारी छाती में भी खंजर या तगमा जड़ देंगे
जीने लायक तो हो
तुम्हारी भी हत्या कर देंगे

मैं बूढ़ी जादूगरनी बहुत मंतर जानती हूं

मैंने जिस सीने पर तगमा सजाया
वही सीना घड़ी बनके रह गया

मैंने जिसके गले में हार डाला
वह बुत बन गया

मैंने जिसे अपना पुत्र कहा
उसे ही अपनी मां का नाम भूल गया

मैंने जिस हाथ को अपने हाथ के मेले के भींचा
वो हाथ पेड़ की टहनी बन गया
और हर तरफ से आती हवा में झूलता रहा

मेरा पेट हंसता है : आईना झूठ बोलता है
जादूगरनियां तो कभी भी बूढ़ी नहीं होतीं

सीनों की किस्में होती हैं
किसी सीने को तगमे से चैन पड़ती है
किसी सीने को गुनगुने दूध के नगमे से चैन मिलती है

और जो बचती हैं बाकी
उसके लिए मेरे हाथों में सिर्फ खंजर ही बचता है

तू ऐसे गुमान न कर
तू ऐसे जल्दी न मचा
तेरे सीने की किस्म भी पहचान लेंगे
और तेरी औकात के मुताबिक चुन देंगे नियति
जीने लायक तो हो
तुम्हारी भी हत्या कर देंगे

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